

मलाना, कुल्लू घाटी के पार्वती घाटी क्षेत्र में स्थित है। यह गाँव समुद्र तल से लगभग 2,652 मीटर की ऊँचाई पर है। यहाँ पहुँचना आसान नहीं है — सड़क मार्ग से एक निश्चित बिंदु तक पहुँचने के बाद ट्रैकिंग करनी पड़ती है।

मलाना के लोग खुद को अलेक्ज़ेंडर द ग्रेट के सैनिकों का वंशज मानते हैं। स्थानीय मान्यता है कि जब अलेक्ज़ेंडर ने भारत पर आक्रमण किया था, तो उसके कुछ सैनिक यहीं बस गए। हालांकि इसका कोई ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है, लेकिन स्थानीय लोगों के चेहरे की बनावट और कुछ आनुवंशिक अध्ययन इस सिद्धांत को बल देते हैं।

मलाना गाँव की अपनी एक सत्ता व्यवस्था है, जिसे “जमलू देवता की अदालत” कहा जाता है। गाँव का प्रशासन देवता द्वारा चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा चलाया जाता है। बाहरी कानूनों और सरकार की इसमें कोई सीधी भूमिका नहीं होती।

मलाना के निवासी खुद को शुद्ध और दूसरों को “अछूत” मानते हैं। बाहरी लोगों को गाँव की चीज़ों को छूने की अनुमति नहीं होती। अगर किसी बाहरी ने कुछ छू लिया, तो उसे शुद्ध करने के लिए विशेष प्रक्रिया की जाती है। ये परंपराएं अब कुछ हद तक नरम पड़ी हैं, लेकिन अभी भी सामाजिक दूरी काफ़ी हद तक बनी हुई है।

मलाना “मलाना क्रीम” के लिए विश्व प्रसिद्ध है — ये एक उच्च गुणवत्ता वाली हशीश (भांग का केंद्रित रूप) है। यह उत्पाद दुनिया भर के यात्रियों को आकर्षित करता है, हालांकि इसकी खेती और व्यापार भारत में अवैध है। इसके कारण गाँव को अंतरराष्ट्रीय पहचान मिली, लेकिन यह भी एक कारण है कि यह इलाका कई बार विवादों में रहा।

गाँव में फगली और मलाना शुंग जैसे त्यौहार मनाए जाते हैं, जो देवता जमलू को समर्पित होते हैं। इन अवसरों पर गाँव में खास पूजा, नृत्य और परंपरागत खेलों का आयोजन होता है।


मलाना की अपनी भाषा है — कंठाली या रकचंपी — जो दुनिया की किसी भी भाषा से मेल नहीं खाती। यह एक विलुप्तप्राय भाषा है और सिर्फ मलाना के लोग ही इसे समझते हैं।
मलाना गाँव आधुनिकता की दौड़ से दूर, अपनी अनोखी संस्कृति और पहचान को आज भी संजोए हुए है। यह एक ऐसा स्थान है जहाँ समय मानो ठहर गया हो, और जहाँ हर पत्थर, हर घर, हर चेहरा अपने आप में एक कहानी कहता है।